राम एक टिपन

राम जन्माच्या दिनी ग्लॉसी पेपरवर आलेला
श्रीरामाचा फुलपेज फोटो आणि...
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आई, तू रामाचा फोटो
रद्दीत टाकतेय?
अगं राम तर देव आहे
त्याची पूजा करायची असते
भजन, आरती करायची असते
... काका करतात
बघ अशी...
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तिची पूजा सुरुच असते...
तोच पेपर उडत जाऊन
तिच्या बाबांच्या पायाजवळ पडतो
बाबा, राम पाया पडतो बघ तुझ्या...
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मग त्याला टेबलाशी घेऊन बसतं
राम असा निळा का दिसतोय
सिरीयल मधला राम तर गोरा दिसतो..?
असे सावळ्या लोकांना निळे का दाखवितात वैगेरे, वैगेरे...
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आणि मग बर्‍याच दिवसानी
त्या फुलपेज रामाशी
बोलणं-चालणं बंद झाल्याचे पाहून
आलीची वाट पाहिली...
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तर एक दिवस
- मैं अली का भाई सय्यद हूं जी म्हणत
रद्दी मोजता मोजता
त्यानेही रामाचा फोटो अलगद बाहेर काढून ठेवला

हे राम..
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हम गुनहगार औरतें...

सांज की धुप
जाने कितनी ही देर से किवाडो पर ही टीकी थी
इस इंतजार में की,
जमी की चादर पर बिखर के एक गहरी सांस ही ले ले
और मैं बेखबर;
बेखबर अपने आपसे पतंग मांजा करते हुए...
मांजा जो दिखाई नही देता और पतंग है
जो उडने को बेकरार
...किसीने दरवाजे पर दस्तक दी
कोई आया नही बस बाहर से ही दस्तखत लिए
जुर्म के कागज थमा गया.
कितने गुनाहो के कागजाद आते है
और मैं जो हर एक कागज पर दस्तखत करती,
अपने आप को सजा देती हूं...
देखो तो, जैसे सजा के लिए दरवाजा खोला
सलाखो वाले दरवाजे के भीतर अपने आप को पाया.
अब तक किवाडो पर टिकी धुप भी
मेरी परछाई लिए कुछ इस तरह फैली
मानो मुझे पकडकर जेल के अंदर बंद कर दिया हो...
चलो अब मैं तुम्हारी भी गुनहगार हूं...


किवाड को खुला कर किवाड के पास ही बैठी रही
उस धूप को देखते जो धीरे धीरे अलसा रही थी.
गहरे सुनहरे रंग की पलके अब डुब जाना चाहती थी...
मैं चाहती थी वो और कुछ समय मेरे साथ रुके.
इन दिवारो को उन के धुप की कहानी सुनाए...

अक्सर जेल के दिवारो में देखा गया है कि
किसी कोने में पानी का एक मटका होता है.
उसपर जर्मन की थाली.
उसपर संतरे की रंग का प्लास्टीक का ग्लास.
डुबाओ और पियो.
बस उस खाली से समय में पानी पीयो...
प्यास लगी इसलीए, भूक लगी इसलीए,
कोई याद आया इसलीए, किसे भूल जाना है इसलिए,
आसू जो पत्थर बन गले में अटक गया है इसलीए...
और इसलीए भी की सजा कट जाए, खतम हो जाए,
रिहा हो जाए सारे शिकवे; शिकायत से रिहा हो जाए...
एसे अनगिनत वजहसे,
एसे ही अनगिनत बार मैने भी पानी पीया है...
पानी जो जीवन है, पानी जो जीना सिखाता है,
पानी जो सोच को सोख भी लेता है...
बहरहाल मै अपने आप को उस जेल से आजाद कर
एक मग पानी पीने निकल गई....

तुम्हे किसी भी समय प्यास लगती है,
मेरे पानी पीने पर उसका एतराज ??? याद आया...

जब वापस उस जेल जाना चाहा तो पाया
जेल, जेलर, दरवाजे सब गायब. मुझसे से सब आजाद.

कोई है...???
हर कोने को दी गई आवाज;
जो एक दिया जलाए...
शाम होते ही यादो की परछाईया जैसे घेर लेती है.
उठने ही नही देती. किसीका संगीत,
किसीकी शहनाई, किसीकी बिदाई,
कितनीही कोशीशे, कितनीही कहानीया
और एक इकठ्ठा आवाज
तुम कुछ कहती क्युं नही?
तुम कैसे बर्दाश्त करती हो?
तुम गलत कर रही हो?
तुम गुनहगार हो???

हाँ...
हम गुनहगार है किश्वर,
कि सच का परचम उठाके निकलें
तो झूठ के शाहराहें अटी मिले हैं
हर एक दहलीज पे साजॊं की दास्तानें रखी मिले हैं
जो बोल सकती थी वो जबानें कटी मिले है...
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