मेरे भीतर

ये कौन है, जो मुझसे कहता है
सब ठीक हो जाऎगा
अच्छा. सब अच्छाही...

और ये कौन?
जो मुझे दिखाता है...
के अब सब कुछ खत्म हो गया है
सब कुछ
सारे अरमान... सारी खुशीयां...

श्वेत चादर में लिपट...
और मैं मातम में
हाय रे
कौन यह,
जो मुझे बताता है
बावजूद इसके
ऎसे ऎसे करना होगा
ऎसे ऎसे जीना होगा...

कौन है यह?
जो बिलख बिलख कर रोये जा रहा है,
रोए जा रहा है...
ऎसे क्या टुट गया है
ऎसे क्या छुट गया...

कौन है ये सब मेरे भीतर,
भीतर ही भीतर
ये किसका तल, अतल, अंतरतल...

और ये कौन?
जो अभी भी उसकी आगोश पडा हुआ है...
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2 Response to "मेरे भीतर"

  1. Rahul Afriki Says:

    बहोत बढ़िया।

  2. Unknown Says:

    जी बहोत बहोत शुक्रीया...

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